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Saurabh Bharadwaj ED Raid – ईडी ने AAP नेता के घर और 13 ठिकानों पर अस्पताल निर्माण घोटाले में छापा मारा।

ईडी की बड़ी कार्रवाई: आप नेता सौरभ भारद्वाज के घर समेत 13 ठिकानों पर छापेमारी

नई दिल्ली, 26 अगस्त 2025 – दिल्ली की राजनीति में आज बड़ा झटका लगा। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज के घर पर छापा मारा। यह छापेमारी सिर्फ उनके घर तक सीमित नहीं रही। अधिकारियों ने दिल्ली-एनसीआर में 13 अलग-अलग जगहों पर भी रेड डाली।


मामला क्या है?

कुछ साल पहले दिल्ली सरकार ने राजधानी में 24 नए अस्पतालों और मौजूदा अस्पतालों के विस्तार की योजना बनाई थी। इन प्रोजेक्ट्स पर कुल खर्च लगभग ₹5,590 करोड़ अनुमानित था।

लेकिन समय बीतने के बाद कई गड़बड़ियां सामने आईं।

  • कई अस्पताल तय समय पर पूरे नहीं हुए।

  • लागत योजनाओं से कहीं ज्यादा बढ़ गई।

  • टेंडर और कॉन्ट्रैक्ट्स में भी अनियमितताओं के आरोप लगे।

पहले एंटी-करप्शन ब्रांच (ACB) ने इस मामले में केस दर्ज किया। अब ईडी ने इसे धन शोधन (Money Laundering) का एंगल मानते हुए जांच तेज कर दी है।


ईडी और एसीबी की भूमिका

आज की रेड में ईडी ने कई दस्तावेज़ और वित्तीय रिकॉर्ड जब्त किए।

  • संदेह है कि अस्पताल प्रोजेक्ट्स से जुड़े पैसों को फर्जी कंपनियों के जरिए इधर-उधर घुमाया गया।

  • ACB पहले ही सौरभ भारद्वाज और सत्येंद्र जैन पर धोखाधड़ी और साजिश जैसे आरोप लगा चुकी है।

  • अब ईडी ने PMLA कानून के तहत सीधे कार्रवाई शुरू कर दी है।


निवेशकों के लिए क्यों अहम?

पहली नज़र में यह मामला राजनीतिक लगता है। लेकिन इसका असर शेयर बाज़ार के कुछ सेक्टर्स पर दिख सकता है।

  1. सरकारी प्रोजेक्ट्स में देरी

    • घोटाले या जांच से नए टेंडर और फंडिंग रुक सकते हैं।

    • इससे कंस्ट्रक्शन और इंजीनियरिंग कंपनियों पर दबाव आ सकता है।

  2. हेल्थकेयर सेक्टर

    • अस्पताल निर्माण से जुड़े ऑर्डर देर से पूरे होंगे।

    • मेडिकल इक्विपमेंट और सप्लाई कंपनियों की ग्रोथ भी धीमी हो सकती है।

  3. पॉलिटिकल रिस्क

    • भारत जैसे देशों में राजनीतिक जोखिम हमेशा मौजूद रहता है।

    • सरकारी कॉन्ट्रैक्ट्स पर निर्भर कंपनियों में निवेश से पहले सावधानी जरूरी है।


निष्कर्ष

ईडी की रेड ने ₹5,590 करोड़ के अस्पताल निर्माण घोटाले को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। यह केवल कानूनी या राजनीतिक मामला नहीं है। इसका असर उन कंपनियों पर भी पड़ेगा जो सरकारी इंफ्रास्ट्रक्चर और हेल्थ प्रोजेक्ट्स से जुड़ी हैं।

👉 निवेशकों के लिए संदेश साफ है: सरकारी प्रोजेक्ट्स पर निर्भर कंपनियों में निवेश करते समय राजनीतिक और रेग्युलेटरी रिस्क ज़रूर ध्यान में रखें।

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